रविवार, 19 सितंबर 2010

चोट

नकली नोट छापणियां,
खुद ही खागयो चोट।
जल्दबाजी मैं छाप बैठयो,
साठ-साठ गा नोट।
साठ गा नोट बाजारां मैं तो,
जिन्दगी भर नीं चालैगा।
भोला-पंछी गांव-निवासी,
ईं झांसै मैं आलैगा।
बड़ी उम्मीदां ले'र बाबू,
एक गांव मैं आवै।
एक देहाती कन्नूं बा,
नोट खुल्लो करवावै।
साठ गो नोट देख देहाती मुळक्यो,
कि आछी आई ताबै।
तीस-तीस गा नोट आकरा,
मैं भी फिरूं हूं कद गा दाबै।

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