बुधवार, 11 जनवरी 2012

भंवरी तेरे जाल में

भंवरी का सामान्य अर्थ होता है घूमने वाली, फिरकी, भूणी, चकरी या बडे़ घर की लाडेसर। वैसे तो पूरा देश ही इन दिनों चकरी बना घूम रहा है। बेईमानी की हवा में घोटालों की फिरकी खुब घूम रही है। प्रदेश में एक नई फिरकी ने राज्य सरकार के होशो-हवास को असमंजस के भंवरजाल में फसा दिया। एक मंत्री की कुर्सी गई कुछ की जाने वाली है। नये-नये नाम जुड़ते जा रहे हैं। कितने ही बड़ांे के नाम फिरकी अर्थात भंवरी के लपेटे में आ गये। इतनी पुरानी बात होने के बाद जिज्ञासा की टी.आर.पी. कम नहीं हुई बल्कि सीडीयां सामने आने पर फिर बवाल मच खड़ा हुआ। अब तो कोर्ट को भी दिलचस्पी पैदा हो गई है।
युरोप और अमेरिका आदि में तो सैक्स सकैण्डल एक फैशन के तौर पर लिये जाते हैं। आम आदमी ही नहीं देश चलाने वाले भी ऐसा करते हैं। वर्षों पहले ग्रेट ब्रिटेन के भावी राजा ने अपनी प्रेमिका के लिये वारिसनामा से अपना नाम कटवा लिया था अर्थात् उस युवराज ने गद्दी को लात मार दी थी फ्रांस के राष्ट्रपति, अमेरिका के बिल क्लिंटन आदि ने क्या गुल खिलाए ज्यादा पुरानी बात नहीं है और तो और बूढ़े नेल्सन मंडेला ने 27 वर्ष जेल में बिताने के बाद सत्ता सुख प्राप्त होते ही पत्नी बिन्नी मंडेला को तलाक देकर दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंका और अपने से बहुत छोटी उम्र की छबीली गोरी के साथ रहने लगे। हमारे यहां भी बहुत कुछ पढ़ने सुनने को मिलता रहता है। आम ही नहीं खास लोगों में भी चांद और फिजा पैदा होते रहते हैं। 85 साल का एक बूढ़ा शेर जो कभी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल था अपना डी.एन.ए. टैस्ट नहीं करने देता।
ताजा घटना क्रम में भंवरी रहस्य बनी हुई है। जाति से नटनी का स्वभाव था बड़ों से सम्पर्क बनाने में बिल्कुल न नटती थी। रस्सी या बांस पर करतब दिखाने वालों की भंवरी रूप के करतबों के कारण बड़ों की नजरों में चढ़ गई। उसने विडियो एलबमों में एक्ंिटग की, एकाध छोटी – मोटी फिल्म में आई। ए.एन.एम. की आड़ में पता नहीं बड़ों का कैसा इलाज करने लगी के उसके व पति के पास महंगी गाड़ियां हो गई। 75लाख के मकान में रहने लगी, जयपुर के महंगे स्कूल में बेटी को पढ़ाने लगी, जहाँ अच्छे खासे अमीर अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना देखते हैं। हवाई यात्रा होने लगी, करोड़ों की डील की बातें सामने आने लगीं। पूछ बढ़ गई, बल्ले बल्ले होने लगी। जिस बोरून्दा की वो है वहाँ जगत प्रसिद्ध राजस्थानी साहित्यकार बिज्जी अर्थात् विजय दान देथा रहते हैं। उनकी वजह से बोरून्दा प्रसिद्ध था, अब भंवरी के कारण चर्चा में आ गया।
भंवरी जिन्दा है या मुर्दा पुलिस अनुसंधान का विषय है लेकिन रूप जाल का तिलस्म एक मंत्री को पदच्युत कर गया। उसकी सीडियों में देखी गई छवि पर जनता ने थू थू की है। आगे देखना है आने वाले दिनों में हालात का ऊँट किस करवट बैठता है। अपनी हैसियत से ज्यादा पाने की लालसा में क्या से क्या हो जाता है। रूप जाल में फँसा व्यक्ति क्षणिक सुख की एवज में लम्बी रूसवायी झेल बैठता है। खुदा हुस्न देता है तो उसका दुरूपयोग करना ही तो एक मात्र रास्ता नहीं होता। उसे कला की तरह पूजा और पूजाया जाना चाहिए। कोई लूट के माल की तरह दिल-ए-बेरहम होकर बांटने की चीज नहीं होती सुन्दरता। सयाने लोग सही कहते हैं बकरी के मुंह में तुम्बा कब खटाता है। ‘‘अधजल गगरी तो छलके ही छलके।‘‘ और भी कोई पढ़ सुन रहा हो तो समझ जाये दूसरों के फोड़े से घर की फुंसी ही अच्छी जब जी में आये पंपोल ले। पराई खीर-खांड से घर की रूखी सूखी ही भली। किसी भंवरजाल में फंसने की सम्भावना तो नहीं रहती।
– रूपसिंह राजपुरी

व्यंग्य – हरियाणा मेड

हरियाणा हमारा पड़ोसी है। राजपूताना की उम्र के आगे तो वह महज बच्चा है। 1966 में जन्मा है। इतनी कम उम्र में तरक्की की छलांगें भरी है, आष्चर्य होता है। पंजाब से भी ज्यादा सम्पन्न राज्य। देष भर मे खुषहाल किसान यहीं के हैं। सड़कों का जाल गाँव ढ़ाणी तक बिछा है। षिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी राज्य है हरियाणा। दूध दही की नदियों का अलंकार हरियाणा के साथ जुड़ता है। ऊँची कद काठी के, खुला खाने और मुंह आया बोलने वाले हरियाणवी ही होते हैं। मजाक करने में यहाँ के पुरूष ही नहीं स्त्रियाँ भी अग्रणी हैं।
यहाँ की प्रसिद्ध चीजों के नाम गिनाने की नौबत आये तो एक की जगह दस याद आती हैं। हरियाणा के ताऊ प्रसिद्ध हैं। तकिया कलाम की तरह लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं। वहाँ एक सत्तर साल का बूढ़ा बस में सफर कर रहा था। किसी अड्डे से साठ पैंसठ साल की डोकरी चढ़ी तो बूढ़े ने सीट देकर पास बिठाली। धन्यवाद देती हुई बूढी बोली “ ताऊ कठै चाल्या?” बूढे को रीस आई, बोला ‘ गुडकी तेरे खातर छोरा देखन चाल्या।‘
ताऊओं की तरह यहाँ के लाल भी प्रसिद्ध हैं। देवीलाल, बंषीलाल, भजनलाल। एक लाल ने तो थोक मे दलबदल की भेड़चाल प्रारम्भ करके भारतीय लोकतंत्र पर एहसान किया हैं। इस प्रांत मे लालबती गरीब की जोरू सबकी भाभी है। पंच- सरपंच भी अपने घरेलु छकड़े पर लगाये हांडते हैं। राजस्थान में प्रधान और उपप्रमुख तक तरसते रहते हैं।
हांसी के पेडे प्रसिद्ध हैं, तो रोहतक की रेवड़ी। सूरजकुंड प्रसिद्ध है तो इनके हिस्से का चण्डीगढ़ भी खुबसूरती में सानी नहीं रखता। यहाँ का पहनावा भी पहचान है। जवान लड़के धोती चोला और सिर पर छोटे बाल बीच में चोटी का मोह नहीं त्यागते। औरतों में घाघरा जो घुटनों तक नीचा होता है, शायद अस्सी कली का होता है। उसके नेफे तक का कुर्ता बटनदार। सिर पर बीचांे- बीचांे परांदा जो उल्टे रखे गिलास सा प्रतीत होता है। हमारे यहाँ के बोरले का मोसी का बेटा भाई होता है। स्वभाव की तरह कपड़ों में भी रंगीनियत होती है। भारी भरकम जेवर औरतों की पहचान हैं।
यहाँ का चांद प्रसिद्ध है, यहाँ की फिजां भी कम ख्यातनाम नहीं, जिन्होंने प्रेम का पाठ युवक युवतियों को पढ़ाया। तीन महिनों में साबित भी कर दिया कि प्रेम अंधा होता है। साबित कर दिया कि दूसरे की चुपड़ी की बजाय घर की रूखी-सूखी ही भली होती है। यहाँ के मास्टर चंदगीराम हुए हैं जिनकी पहलवानी की परम्परा अभी भी चल रही है। लिखमीचन्द शर्मा रागनी के भगवान हुए हैं। सफदरजंग और फौजी अभी भी रागनी गायन मे किसी के मोहताज नहीं। सांग परम्परा देखनी हो तो हरियाणा ही जाना पड़ेगा।
प्रसिद्धि के मामले में फरीदाबाद की फैक्ट्रियाँ, जगाधरी के ठठेरे, यहाँ की भैंसंे, यहाँ की चंन्द्रावल, रूंडे-खूंडे, यहाँ के गप्पी, यहाँ के नषेड़ी, बड़े बड़े हुक्के, चालीस-चालीस साल के कुंवारे और कहाँ मिलेगे? यूं तो बहुत सारी विषेषताएँ हैं जिन्हें गिनाया जा सकता है लेकिन आजकल एक चीज चर्चा का विषय है वो है यहाँ की शराब जो ‘ हरियाणा मेड‘ के नाम से प्रसिद्धि के रिकार्ड तोड़ती जा रही है। राजस्थान में कोई चुनाव हो यह ‘हरियाणा मेड‘ ही नाक बचाती है और तारनहार प्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रमाणित होती है। बताया जाता है कि चुनावों में तीन-चार रूपये पऊआ की दर से स्टोर रूम तक पहुँचा दी जाती है। तभी तो उम्मीदवार बेरहमी से बांटते हैं। जो नहीं पीता उसे भी थमा देते हैं। औरतों तक के हाथ में पाँच चार पऊआ का थैला पकड़ा कर वोट की गुहार लगाते हैं। ‘माले मुफत दिले बेरहम‘ समझकर औरतें रख लेती हैं कि ‘घरवाले‘ बाद में पी लेंगे। एमरजेंसी स्टॉक का कोटा बढ़ता रहता है। अब सोचने की बात है, इस रेट में रेल्वे स्टेषनों पर सादा पानी की बोतल भी नहीं मिलती और हरियाणा के व्यापारी ‘‘अंगुर की बेटी‘‘ दे जाते हैं। हवाई – अड्डों, सुपर फास्ट रेलों और बड़े होटलों में पानी की बोतल सत्तर रूपये तक मिलती है।
आफ सीजन अर्थात् आजकल भी कभी कभार हरियाणा मेड के ट्रक पकड़े जाने की खबर सुनने को मिल जाती है। बीकानेर सिरोही ही नहीं बांसवाड़ा तक सुनने में आ जाता है कि वहाँ पकड़ी गयी। भादरा के बार्डर पर तो खैर बात दूसरी है। इतनी दूर तक होम डिलीवर दिल-गर्दे वालों के वष की ही बात है। वहाँ के दिलेरांे को साधुवाद कि हमारे राजस्थान के लोगों को सस्ता माल पहुँचाकर एहसान कर रहे हैं। किसी की चुगली करनी आसान होती है अपने गिरेवान में भी झांकना चाहिये। अपनी चारपाई के नीचे भी सोटा फेरना चाहिये। हो सकता है हमारे नाली क्षेत्र के गावों के भाई यही काम करके उल्टे बांस बरेली को भेज रहे हों। क्योंकि फैैक्ट्री मेड और हैंड मेड के स्वाद में दिन रात का अन्तर होता है।