बुधवार, 11 जनवरी 2012

व्यंग्य – हरियाणा मेड

हरियाणा हमारा पड़ोसी है। राजपूताना की उम्र के आगे तो वह महज बच्चा है। 1966 में जन्मा है। इतनी कम उम्र में तरक्की की छलांगें भरी है, आष्चर्य होता है। पंजाब से भी ज्यादा सम्पन्न राज्य। देष भर मे खुषहाल किसान यहीं के हैं। सड़कों का जाल गाँव ढ़ाणी तक बिछा है। षिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी राज्य है हरियाणा। दूध दही की नदियों का अलंकार हरियाणा के साथ जुड़ता है। ऊँची कद काठी के, खुला खाने और मुंह आया बोलने वाले हरियाणवी ही होते हैं। मजाक करने में यहाँ के पुरूष ही नहीं स्त्रियाँ भी अग्रणी हैं।
यहाँ की प्रसिद्ध चीजों के नाम गिनाने की नौबत आये तो एक की जगह दस याद आती हैं। हरियाणा के ताऊ प्रसिद्ध हैं। तकिया कलाम की तरह लोग इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं। वहाँ एक सत्तर साल का बूढ़ा बस में सफर कर रहा था। किसी अड्डे से साठ पैंसठ साल की डोकरी चढ़ी तो बूढ़े ने सीट देकर पास बिठाली। धन्यवाद देती हुई बूढी बोली “ ताऊ कठै चाल्या?” बूढे को रीस आई, बोला ‘ गुडकी तेरे खातर छोरा देखन चाल्या।‘
ताऊओं की तरह यहाँ के लाल भी प्रसिद्ध हैं। देवीलाल, बंषीलाल, भजनलाल। एक लाल ने तो थोक मे दलबदल की भेड़चाल प्रारम्भ करके भारतीय लोकतंत्र पर एहसान किया हैं। इस प्रांत मे लालबती गरीब की जोरू सबकी भाभी है। पंच- सरपंच भी अपने घरेलु छकड़े पर लगाये हांडते हैं। राजस्थान में प्रधान और उपप्रमुख तक तरसते रहते हैं।
हांसी के पेडे प्रसिद्ध हैं, तो रोहतक की रेवड़ी। सूरजकुंड प्रसिद्ध है तो इनके हिस्से का चण्डीगढ़ भी खुबसूरती में सानी नहीं रखता। यहाँ का पहनावा भी पहचान है। जवान लड़के धोती चोला और सिर पर छोटे बाल बीच में चोटी का मोह नहीं त्यागते। औरतों में घाघरा जो घुटनों तक नीचा होता है, शायद अस्सी कली का होता है। उसके नेफे तक का कुर्ता बटनदार। सिर पर बीचांे- बीचांे परांदा जो उल्टे रखे गिलास सा प्रतीत होता है। हमारे यहाँ के बोरले का मोसी का बेटा भाई होता है। स्वभाव की तरह कपड़ों में भी रंगीनियत होती है। भारी भरकम जेवर औरतों की पहचान हैं।
यहाँ का चांद प्रसिद्ध है, यहाँ की फिजां भी कम ख्यातनाम नहीं, जिन्होंने प्रेम का पाठ युवक युवतियों को पढ़ाया। तीन महिनों में साबित भी कर दिया कि प्रेम अंधा होता है। साबित कर दिया कि दूसरे की चुपड़ी की बजाय घर की रूखी-सूखी ही भली होती है। यहाँ के मास्टर चंदगीराम हुए हैं जिनकी पहलवानी की परम्परा अभी भी चल रही है। लिखमीचन्द शर्मा रागनी के भगवान हुए हैं। सफदरजंग और फौजी अभी भी रागनी गायन मे किसी के मोहताज नहीं। सांग परम्परा देखनी हो तो हरियाणा ही जाना पड़ेगा।
प्रसिद्धि के मामले में फरीदाबाद की फैक्ट्रियाँ, जगाधरी के ठठेरे, यहाँ की भैंसंे, यहाँ की चंन्द्रावल, रूंडे-खूंडे, यहाँ के गप्पी, यहाँ के नषेड़ी, बड़े बड़े हुक्के, चालीस-चालीस साल के कुंवारे और कहाँ मिलेगे? यूं तो बहुत सारी विषेषताएँ हैं जिन्हें गिनाया जा सकता है लेकिन आजकल एक चीज चर्चा का विषय है वो है यहाँ की शराब जो ‘ हरियाणा मेड‘ के नाम से प्रसिद्धि के रिकार्ड तोड़ती जा रही है। राजस्थान में कोई चुनाव हो यह ‘हरियाणा मेड‘ ही नाक बचाती है और तारनहार प्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रमाणित होती है। बताया जाता है कि चुनावों में तीन-चार रूपये पऊआ की दर से स्टोर रूम तक पहुँचा दी जाती है। तभी तो उम्मीदवार बेरहमी से बांटते हैं। जो नहीं पीता उसे भी थमा देते हैं। औरतों तक के हाथ में पाँच चार पऊआ का थैला पकड़ा कर वोट की गुहार लगाते हैं। ‘माले मुफत दिले बेरहम‘ समझकर औरतें रख लेती हैं कि ‘घरवाले‘ बाद में पी लेंगे। एमरजेंसी स्टॉक का कोटा बढ़ता रहता है। अब सोचने की बात है, इस रेट में रेल्वे स्टेषनों पर सादा पानी की बोतल भी नहीं मिलती और हरियाणा के व्यापारी ‘‘अंगुर की बेटी‘‘ दे जाते हैं। हवाई – अड्डों, सुपर फास्ट रेलों और बड़े होटलों में पानी की बोतल सत्तर रूपये तक मिलती है।
आफ सीजन अर्थात् आजकल भी कभी कभार हरियाणा मेड के ट्रक पकड़े जाने की खबर सुनने को मिल जाती है। बीकानेर सिरोही ही नहीं बांसवाड़ा तक सुनने में आ जाता है कि वहाँ पकड़ी गयी। भादरा के बार्डर पर तो खैर बात दूसरी है। इतनी दूर तक होम डिलीवर दिल-गर्दे वालों के वष की ही बात है। वहाँ के दिलेरांे को साधुवाद कि हमारे राजस्थान के लोगों को सस्ता माल पहुँचाकर एहसान कर रहे हैं। किसी की चुगली करनी आसान होती है अपने गिरेवान में भी झांकना चाहिये। अपनी चारपाई के नीचे भी सोटा फेरना चाहिये। हो सकता है हमारे नाली क्षेत्र के गावों के भाई यही काम करके उल्टे बांस बरेली को भेज रहे हों। क्योंकि फैैक्ट्री मेड और हैंड मेड के स्वाद में दिन रात का अन्तर होता है।

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