गुरुवार, 4 नवंबर 2010

लो भाई दीवाली आई
















रोशनियों के रथ पर चढकर,
उमंगों के वसनों में सजकर,
मंगलमयी संदेशा लाई।
लो भाई दीवाली....।
पकी बाजरी मचले मोठ,
बना मतीरा गोरी के होंठ,
रूई के खेत में चांदी छाई।
लो भाई दीवाली....
कोट स्वेटर का हुआ स्वागत,
गुड़ गज्जक की हो गई आगत,
छुप गये शर्बत, बर्फ, ठण्डाई।
लो भाई दीवाली....
दे गई ठंड गुलाबी आहट।
सूरज से छिन गयी गर्माहट
अच्छी लगने लगी रजाई।
लो भाई दीवाली....
मच्छर मक्खी से पिण्ड छुड़ाये,
दिन रातों में पढने के आये,
रामलीला को मिली बिदाई।
लो भाई दीवाली.....।
घर, आंगन और सजी दुकान
ललचाने लगे हैं अब पकवान,
रंग-रोगन आई हुई पुताई।
लो भाई दीवाली......।
दीपावली का जगमग आलोक,
मिटे क्लेश दु:ख और शोक,
भेदभाव की सिकुड़ी खाई।
लो भाई दीवाली आई.....।

फुलझड़ी


पटाखों की दुकान पर
मुन्ना बोला - मम्मी!
फुलझड़ी मत लेना,
पड़ोस में
बहुत पड़ी है।
कल पापा पड़ोसन आंटी से
प्यार करते हुए
कह रहे थे
तू तो मेरी जान
खुद फुलझड़ी है॥
तब मम्मी बोली -
डोंट वरी, मैंने,
सब हिसाब
बराबर किये हैं।
पटाखों वाले अंकल को
पैसे कहां दिये हैं।