बरसना है तो रामजी ढंग स्यूं बरसो, गाजण-गूजण में के पड़यो है | पति न परमेशर मानो ए पत्नियों, साजण-सूजण में के पड़यो है | घरूं पढ़ण जान्ती छोरियां न इत्तो ई कहंनो है , थे दौड़ लगाण सीख ल्यो, भाजण-भूजण में के पड़यो है
जुबां जब चुप रहती है, निगाह बात करती है | तेरी झुकी हुई निगाह भी, खुबसूरत फ़साना है | वो उंगली पर लपेटना दुपट्टा, पांव के अंगूठे से धरती पर कुछ लिखना और मिटाना, रुक-रुक के चलना , फिर पलट के देखना, शरमा के भाग जाना , और छत पर आ जाना तस्लीम-ए-मुहब्बत का दिलकश बहाना है |